दिल में बसे यादोँ के जीवनऋतू |
जीवनऋतू भी अजीब होते है। वे कभी ख़ुशी के तो कभी तूफ़ान से होते है। वे होते है अनंत रेशमी भावनाओंके, दिल में बसे यादोँ के। जीवनऋतू लाते है जिंदगी में बहार खुशियों की जैसे कि पतझड़ के बाद आये किसी वृक्ष पर नए पत्ते। ये जीवन ऋतु ही है जहाँ जिंदगी की बेल बहरते रहती है। कभी कभी तूफ़ान में ख़ुद ही निचे गिर जाती है और फिर उसी तन्मयता के साथ पल्लवित भी होने लगती है।
सच जानिए कुछ ऐसा ही होता है जीवन को जीने में। कभी लगता है जिंदगी को जी भर के जिया जाए लेकिन पता नहीं क्यों जीते जीते हथेलियाँ ख़ाली कि ख़ाली ही रह जाती है ? क्या सच में ख़ाली होता होगा जीवन ? नहीं, ऐसा नहीं है, ख़ालीपन का नाम तो जीवन नहीं हो सकता ? असल में इस ख़ालीपन को पूरा करने का नाम ही जीवन है। धरती वहाँ तो कभी ख़त्म नहीं होती जहाँ क्षितिज होता है। क्षितिज के पार भी तो आसमान होता है, धरती होती है। उसी क्षितिज के पार कि जिंदगी को जीते आना चाहिए। सुख दुख तो जीवन के तराजू है, जो जीवन को संतुलित करते रहते है। हालाँकि जीवन में हर चीज़ अपने पूर्णत्व में सिर्फ़ एक ही है। दूसरी सिर्फ़ पहले की गैरमौज़ूदगी है।
सारे ब्रम्हांड में प्रकाश एक ही है, अँधेरा भी एक ही है। जहाँ प्रकाश नहीं वहाँ अँधेरा है, जहाँ अँधेरा है वहाँ प्रकाश नहीं बस इतना ही गणित है जीवन का। जहाँ सुख नहीं वहाँ दुख ही होगा, जहाँ दुख होगा वहाँ सुख होगा ही नहीं। कैसे हो सकता है, क्योंकि जीवन की सारा सार पूर्णत्व में एक ही है। जहाँ जीवन होगा वहाँ मौत नहीं होगी, जहाँ मौत होगी वहाँ जीवन नहीं होगा। दोनों चीजें एक साथ कभी नहीं हो सकती। ये वस्तुतः संभव नहीं है। जीवन के गणित इंसानों जैसे नहीं होते। अगर दुख भी हो जीवन में तो भी क्या फ़र्क पड़ जाता है ? बस सुख की गैरमौज़ूदगी है, इससे ज्यादा और कुछ नहीं। और सिर्फ़ किसी ग़ैरमौजूदगी के लिए हतबल हो कर इस जीवन को नकार दे; ये तो जीवन जीने कि रीत नहीं हो सकती। ये तो जीवन का सूत्र नहीं हो सकता।
जीवन के सूत्र कहते है जितना हो सके जीवन को आगे ढकेलते रहना चाहिए उन्हीं दुखों के साथ जिन्हें हम बेवज़ह जिंदगी में ढ़ोते रहते है। लाखों - हज़ारों लोग है इस दुनियाँ में जो अपने जिंदगी से ऊब गए है। वही रटीरटाई जिंदगी में उन्हें लगता है कुछ नहीं बचा है जो जीने लायक़ हो। उनका यहीं ख़ाली हुआ आत्मविश्वास उन्हें निचे की और ले जाता है। अपने दुखों की, ख़ालीपन की मौज़ूदगी को बदलने के बजाय वही बैठे रहते है जहाँ सारे जीवन ऋतू बेजान हो जाते है।
जीवन ऋतुओं का भी अपना एक खेल होता है, अपने मौसमी बहारों के लिए वे किसी के खिलने का इंतज़ार नहीं करते बल्कि उनके आने से बहार खिल उठती है। जीवन ऋतू की यही ख़ासियत है कि वो हर क्षण, प्रति क्षण बदलते रहता है। जीवन ऋतू भी ख़ुद के अस्तित्व के लिए लड़ता रहता है। अपने अस्तित्व के लिए वो भी किसी ग़ैरमौजूदगी को तलाशते रहता है। जहाँ प्रतिपल सब बदल रहा हो इस तथ्य को जानने का नाम ही जीवन है। जीवन के ऋतू भी उसी आधार पर तय होते है। जीवन का मतलब ही है जहाँ हर पल ऊर्जा गतिमान हो रही हो। बिना ऊर्जा के इस ब्रम्हांड में कभी कुछ संभव नहीं है। सारा अस्तित्व इस ऊर्जा पर ही टिका हुआ है। किसी भी मानवनिर्मित बंधन में न रहते हुए 'जीवन' ये शब्द ही निरागस हसीं, आशा, थके हुए को नई ऊर्जा और नीरस चेहरे पर खुशी की लहर महसूस करता है।
माना जीवन कठिन है, लेकिन यही शब्द जीवन के हर ठहराव पर बदलते जाता है। असल में जीवन की कठनाई में ही उसकी सुंदरता छुपी हुयी है। ये सुंदरता किसी शब्दों तक ही सिमित न रहते हुए उस जीने के अनुभवों में भी होनी चाहिए। निसर्ग की हरियाली जैसे दिल को मोह लेती है वैसी ही हरियाली जीवन में भी होनी चाहिए। फूलों कि कोमलता चाहे कितनी भी नाजुक़ हो फिर भी फूल होने का अस्तित्व ही उसका असली प्रतिबिंब होता है। कुछ घंटों का ही जीवन लेकर वे अपने अस्तित्व को जीते रहते है। इस छोटे से अपने जीवन में दूसरों के लिए ख़ुद को समर्पित कर देते है। इंसान का जीवन भी इससे कुछ अलग नहीं। क्या फ़र्क पड़ता है कि हमारा जीवन दस साल का रहा, पचास साल का रहा या सौ साल का ? ब्रम्हांड के अस्तित्व के सामने हर चीज़ मर्यादित, सिमित है लेकिन फिर भी हम उसे हजार तरीक़े से अमर कर सकते है। कम से कम ख़ुद के नज़र में तो ज़रुर कर सकते है।
जीवन कभी हथेली में सुखों के फूल डालता है, तो कभी आँसुओं का सैलाब। फिर भी हम सब अपने अपने पगडंडियों पर चलते रहते है। जीवन ऋतू यक़ीनन अज़ीब है, समज़ के परे है, लेकिन जिसे इस जीवन ऋतू के आने का ख़याल आता है वही युगांधर बन जाता है। पल आते है, पल जाते है. . . . पर जीवन में घटने वाले सारे ऋतू हमेशा मन में बसे रह जाते है। ये ज़रुरी नहीं के जीवन ऋतू के सारे फूल खिल ही जायेंगे। बात सिर्फ़ ये समझाने की है कि जीवन ऋतू का सत्य हमारे जीवन में न मिला तो भी वह है, हमेशा रहेगा, चाहें हमारा अस्तित्व इस दुनियाँ में हो या ना हो। बात सिर्फ़ ये जानने की है कि उसकी अनछुई अनुभूति हमेशा हमारे दिल में बसी है।
ये भी ज़रुरी नहीं कि हर जीवन किसी ध्येय के साथ ही जुड़ा हो। कभी कभी ध्येयहीन जीवन को भी कुछ आकार होता है, उसका रंग भी पतझड़ के मौसम से रंगा होता है। हर इंसान के जीवन में उसका कार्य पर्वत जैसा ही महान होगा ये ज़रुरी नहीं, लेकिन फिर भी किसी छोटेसे पहाड़ी जैसे तकलीफों को झेलते हुए उस जीवन ऋतू को अपने जीवन में उतारने कि हिम्मत रखता हो, ये उस पर्वत की ऊँचाई से कुछ कम नहीं। हम जिंदगी जिए इससे ज्यादा मायने रखती है ये बात की हम कैसे उस जिंदगी की आँधी में टिके रहे। यही बात कृतार्थ की होती है। जीवन ऋतू के प्रति धन्यवाद इसी बात का है। जिनकी हथेलियाँ ही ख़ाली होगी उनके जीवन के झोली में क्या ख़ाक मिलेगा ? जीवन ऋतू हमेशा अनकहे, अनसुलझे दर्द से भीगा हुआ सा है। उसी मन को समाधान की रसीद दिखाते हुए जीवन को पूरा करने के रास्ते पर हमें चलते रहना है, बस उसी तरह जिस तरह बहते रहना झरने का निसर्गधर्म होता है। जीवन ऋतू का भी यही निसर्ग धर्म होता है।
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