हम जो हैं उससे ज्यादा कुछ नहीं होना चाहिए |
हम सभी हमारा जीवन ऐसे संप्रदाय
के भीड़ के साथ जीना चाहते है जिसका कोई वजूद ही नहीं होता। हम भीड़ का वो हिस्सा होते
है जिस के सोचने की सारी क्षमता नष्ट हो चुकी है।
हम यह सोचने की हिम्मत जुटाने में हमेशा नाकाम रहे है की ख़ुद के जीवन में भी कुछ गलत हो गया है। हम इस बात को भी कभी स्वीकार नहीं करते की ये सब
कुछ उस समाज या संप्रदाय से हो रहा है जिसमे हम जीते है। सभी चीजे हमेशा सही नहीं हो
सकती। जिस समाज में या दुनिया में हम को या हमारे परिवार को हमेशा डर लगा रहता हो क्या
आप मानते है की आप स्वस्थ समाज का हिस्सा है। नहीं, समाज स्वस्थ नहीं है क्योकि आप
जानते है की लोग आप के साथ या आपके परिवार के साथ कुछ भी कर सकते है तो आप इस बात पर
कैसे राजी हो सकते है कि समाज ग़लत नहीं है।
आख़िर समाज या संप्रदाय तो हम जैसे लोगो से ही मिलकर बना है। अगर दूसरे हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकते है तो
यकीन मानिये आप भी दुसरो के लिए कम ख़तरनाक नहीं है भले ही हम खुद को शरीफ कहते हो।
और इसलिए हमारे जीवन के मूल्य दो कौड़ियों के लायक
हो गए है।
सबसे बड़ा कारण यह है कि हम इसे बदलना ही नहीं चाहते, हम इस पर फिर से विचार नहीं करना चाहते हैं। अगर हम इसे बदलने के लिए फिर से सोचने को तैयार नहीं हैं; यह खुद दिखाता है कि हम कायर हैं। जीवन का हर पहलू अब बदल गया है, फिर ऐसी बेवकूफी भरी रूढ़िवादी व्यवस्था क्यों नहीं ?? हर कोई अपनी परंपरा या जीवन प्रणाली को दूसरों से बड़ा और बेहतर मानता है, अगर यह सच है, तो शांति कहाँ है, इतनी कटी हुई प्रतिस्पर्धा, दुनिया में ऐसा पागलपन क्यों? क्या हम महत्वाकांक्षा, लालच, ईर्ष्या और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की इच्छा से मुक्त हैं? यदि नहीं, तो हम केवल हमारे अपने दिमाग और जीवन के साथ एक खेल खेल रहे हैं। जीवन की सुंदरता, जीवन की उच्च गुणवत्ता विशुद्ध रूप से धार्मिक होनी चाहिए। इसके लिए पहले समग्र मनुष्य बनने की कोशिश होनी चाहिए फिर जो कुछ भी हम रचेगे या जो कुछ भी करेंगे वह सुंदर होगा। लेकिन पहले इंसान होना चाहिए। मनुष्य होने का अर्थ है, जीवन, मृत्यु, प्रेम, प्रकृति, स्वस्थ संबंध, बुनियादी सामाजिक जिम्मेदारियों, जानवरों पर दया की कुल समझ। वह सब जो जीने में निहित है। और उस रिश्ते की अभिव्यक्ति संपूर्ण और स्वस्थ होनी चाहिए। हमारा जीवन मानव जाति के हाथ में सबसे शक्तिशाली उपकरण में से एक है। लेकिन इसे समस्याओं को हल करने के बजाय हमने इसे और जटिल बना डाला। दुनिया में जीवित रहने, आगे बढ़ने के लिए सामाजिक सुधार आवश्यक हैं। लेकिन चूंकि हम अपने जीवन से पूरी तरह से जुड़े हुए नहीं हैं, इसलिए विचार और हमारे सामाजिक सुधार हमें दुनिया और जीवन का भी आनंद नहीं लेने देते।
हम जो हैं उससे ज्यादा कुछ नहीं होना चाहिए। हमें स्वयं के प्रति समर्पण करने का साहस करना है, क्योंकि हर पहलू पर समर्पण का अहंकार ही मुख्य समस्या है। और समाज की यही बेवकूफी भरी परम्पराये हमें उन्नत जीवन जीने से रोकती है। समाज के सारे मूल्य राजनैतिक हो गए है। राजनैतिक विचारधारा कभी भी व्यक्ति को स्वतंत्र होने की सुविधा नहीं देती। राजनैतिक विचारधारा हमेशा भीड़ चाहती है, जिसका अपना कोई चेहरा ना हो। हम अपने जीवन में जिन भारी विचारों को धारण करते हैं, हो सकता हो कोई भी संप्रदाय या समाज शायद ही इस बात पर राज़ी हो जाये की उस व्यक्ति को उसकी धारणा के साथ जीने दिया जाय । इसके अलावा, हम खुद की एक वास्तविक छवि रखते हैं जो हमें बताती है कि हम हैं या हमें ऐसा होना चाहिए। हमारे मन और जीवन के तरीके के बीच कोई उचित अंतर्संबंध नहीं है। मन और जीवन की अखंडता हमारी अवधारणा से बहुत दूर है, इसलिए जीवन इस बात से इनकार करता है कि हम ब्रह्मांड हैं, जैसे पहाड़, नदी, जंगल या बादल।
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