दुनिया कभी भी बेहतर नहीं होगी जब तक कि लोग खुद बेहतर नहीं होंगे। बेहतर का मतलब ये नहीं है कि हम अच्छे नहीं है। बेशक हम सभी अच्छे है, लेकिन बेहतर नहीं। और अच्छे भी कितने ? हमारा सारा उन्माद, सारा फसाद सूचित करता है कि हम सच में कितने अच्छे है। मज़े कि बात तो ये है कि हम सभी सिर्फ अपने लिए ही अच्छे है। दूसरा हमारी नज़रो में हमेशा बुरा होता है। क्योकि समाज में बुरा काम तो सिर्फ दूसरे करते है, खुद को छोड़कर। आजतक हमारी सारी शिक्षाओं ने, परिवारोने ये ही सिखाया है कि दूसरा बुरा है। सारे जीवन में हमें सिर्फ और सिर्फ ये ही समझाया गया है। हमने सब पता लगा लिया है, सिर्फ इस बात को छोड़कर कि कैसे जीना है, कैसे अच्छे बनना है। क्या आपको सच में लगता है की जिस सभ्य समाज कि बात हम सभी करते है क्या वास्तव में ऐसा कोई समाज है इस दुनिया में? हाँ, अगर है तो आप फिर से एक बार जरुर इस पर सोचे। और अगर आपको लगता है कि हम सच में अच्छे है तो ये कौन बच्चियों पर बलात्कार करता है ? ये कौन है जो खुद को श्रेठ जाती का समजकर निचली जाती के लोगो को यातनाये देते है ? ये कौन है जो रास्ते पर उतरकर धर्मो के दंगे करवाते रहते है? ये कौन लोग है जो लोगो के जीने का सहारा छीनते है ? ये कौन लोग है जो जिन्होंने शिक्षा जैसी बुनियादी चीजों का धंदा बना दिया है ? ये कौनसा सभ्य समाज है जहा स्त्रियों को कही आने जाने में डर लगता है ? ये कौनसा समाज है जहां वेश्यावृति में स्त्रियाँ नरक जैसी जिंदगी जीते है ?
हमारा सारा समाज और देश अगर इन बातों से ग्रसित है तो हम खुद को बिल्कुल सभ्य और विकसित नहीं मान सकते। ऐसे समाज में खुद को सभ्य या अच्छा समझना बिल्कुल बेमानी है। ये खुद के साथ किया हुवा धोखा है।और हम सभी आज तक इसी धोख़े में रहकर जीते है और एक दिन मर जाते है ये समझकर कि हमारा जीना हमने जी लिया, और हमने सफलतापूर्वक जिंदगी जी ली है । जीवन के सफलता का राज़ इतना सस्ता नहीं हो सकता। खुद को अच्छा समझने से अगर हम सच में अच्छे हो जाते हो हम सभी बुद्ध, कृष्ण या महावीर हो जाते। हम सच में नहीं हो पाए ये दुर्भार्ग्यपूर्ण है। हम हमेशा दूसरों को दोष देने के आदि है। हमारा सारा जीवन दुसरो को दोष देने में ही गुजर जाता है। हमने आज तक कभी ये सोचा ही नहीं कि हम और सिर्फ हम खुद अकेले उन सभी चीजो के लिए जिम्मेदार है जो हम वास्तव में है। क्योंकि हम खुद नहीं चाहते की हम सच में अच्छे बने। क्योंकि जो सच में अच्छा होना चाहेगा वो उसके लिए ज़िम्मेदार होगा। यही तथ्य है और हम आज तक इसी तथ्य को स्वीकारने से डरते रहे है।
हम शायद इसलिए अच्छे नहीं होना चाहते क्योंकि हमारा जीवन दुखी है बल्कि इसलिए कि हम अच्छे होने कि निंदा करते है। हमारा अच्छा होना सिर्फ एक ढोंग है और हम सभी मिलकर ये ढोंग कर रहे है। ये सच है कि हमारा जन्म और परवरीश कि परिस्थितिया हमारे नियंत्रण से परे थी, पर हम अपने आने वाले पीढ़ियो के लिए तो निश्चित तौर पर ऐसी परिस्थितिया बना सकते है जहां वे सच में सभ्य होने का गर्व कर सके। लेकिन दुर्भाग्यवश हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि जब तक खुद आत्म -जागरूक ना हो, हम दुसरो को कैसे जागृत कर सकते है ? दूसरो का दिया तभी जलाया जा सकता है जब हमारा खुद का दिया प्रज्वलित हो। हमें खुद के लिए ऐसे विकल्प चुनने होंगे जो विकल्प हमारे जागृत होने को परिभाषित कर सके। हाँ, इसमें दिक्कत जरुर होगी क्योंकि हमारा सारा जीवन चक्र एक निश्चित तरीके से कार्य करता है। हमारे जीवन का कोई निश्चित डिज़ाइन नहीं है।
हमने कभी भी अपने पुरे जीवन में ये एक बार भी नहीं सोचा है कि क्या हम सच में खुद के अच्छे होने के लिए सोचते है ? अगर हम सच में सोचते है तो क्यों किसी दूसरी चीजों के अधीन है? हम बाहरी चीजों के या दूसरे लोगो के इतने प्रभाव में जीते है कि ये जानना मुश्किल हो जाता है कि हम कब खुद के बारे में सोच रहे है। ज्यादातर संभावना इसी बात कि है कि हमारी सोच बिल्कुल ही हमारी खुद की नहीं है। बेशक़, हमारा जन्म आनंद की अनुभूति करने के लिए और आनंद का त्यौहार मनाने के लिए ही हुवा है। लेकिन इस आनंद का अनुभव तभी हो सकता है जब हम उस क़ाबिल हो जाए जहां हम आनंद और खुशियाँ बाँट सके। क्योंकि पुरे जगत में बाँटने की हिम्मत तो सिर्फ़ सम्राट ही कर सकते है, जिनके पास देने को कुछ है, बाकी तो सभी भिकमंगे है जो सिर्फ लेने के लिए ही बैठे है। ये हमारा चयन है कि हम खुद को सम्राट साबित करे या भिकारी। प्रत्येक दिन हमारे पास अपने जीवन को नियंत्रित करने कि क्षमता होती है, या इसे नियंत्रित करने की अनुमति होती है।
हम या तो सक्रीय हो सकते है या निष्क्रिय। अपने जीवन को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने के लिए हमें अपने आप को और अपने जीवन के हर क्षेत्र के लिए जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जब हम अपने जीवन को बेहतर ढंग से नियंत्रित करते है तो हम अधिक उत्पादक और अधिक आशावादी बन जाते है। हम जब सच में अपने जीवन के स्तर को बढ़ाने के लिए कदम उठाते है तो हमारे विचार जागृत होने लगते है, जिससे हमारा ज्ञान बढ़ता है। जब ज्ञान बढ़ता है तो विचार ईमानदार होने लगते है और जब विचार ईमानदार होते है तो मन भी ईमानदार होने लगता है। मन के ईमानदार होने से हम चीजों की दिव्यता देख सकते है। और जब तक हम चीजों की दिव्यता नहीं देख पाते है तब तक हम हमेशा एक दूसरे पर अहसान करने का बहाना ढूंढ़ते रहेंगे।
Eye opening article, thanks
ReplyDeleteThank you for visiting and reading article. It really helps to motivate us
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