हम से बड़ा बेवकूफ़ कोई दूसरा नहीं

हम आधुनिक सभ्यता के लोगो ने इस प्राकृतिक दुनिया को इस हद तक बर्बाद कर दिया है जिसे वापस उसी स्थिति में पाना अब शायद ही संभव हो । हम इंसानों ने अपने पुरे मानव इतिहास में जो चीज़ सबसे ज्यादा बर्बाद की है, वो हैं प्रकृति /नेचर। हम आज भी सभ्यता के नाम पर उस चीज़ को बर्बाद कर रहे हैं, जिससे हम सब जिन्दा है। और सिर्फ हम ही जिन्दा नहीं है, हमारी आने वाली पीढ़ी भी जिन्दा रहेगी। हम सभी तथाकथित आधुनिक सभ्यता के लोग उस चीज़ पर जीत हासिल करना चाहते है, जिसमे सिर्फ और सिर्फ हमारी ही हार है। हाँ, ये जरुरी है कि, जीवन जीने के लिए प्रकृति के साथ संघर्ष करना चाहिए। और बड़े मज़े की बात है की अब ये संघर्ष हमारी महत्वाकांक्षा में बदल गयी है। हम इंसांनो ने अब तक इतने जंगली जानवरों को मार डाला है कि कुछ प्रजातियाँ तो पूरी तरह से विलुप्त हो गयी है। छोटी मोटी कई नदियों के धाराओं को हमने पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। हमने कई झीलों को बंजर बना दिया है। हम अब तक ये बात नहीं समझे कि हम मनुष्य भी दूसरे जानवरों के बैगैर जीवित नहीं रह सकते।  अगर हम उन्हें विलुप्त कर रहे है तो वो दिन दूर नहीं जब नेचर ही हमें खुद विलुप्त कर देगी।       आज हम सभी लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जीते है। लेकिन यह भी नेचर की देन है। हमने अपने स्वस्थ होने लिए जो भी तरीके इस्तेमाल किये है वो सारे नेचर की और से है। आज हम जो भी दवा इस्तेमाल करते है, वो सारी प्रकृति की और से ही आती है। फिर भी हम नेचर को धन्यवाद दिए बिना ही जिए जाते है। हम अब तक इतने भी शिक्षित नहीं हुए की अपने आस पास की जगह को ठीक ठाक रख सके। सीधी बात तो ये है की हम सिर्फ अपने शिक्षित होने का ढोंग करते है। आप जरा सोचिये, क्या हम पर्यटन की जगह को साफ सुथरा रखते है ? मुझे नहीं लगता की हम लोग अपने घर को छोड़कर दूसरे जगह हो स्वच्छ और सुन्दर देखना चाहते है। जबकि वातावरण हमारे तनाव को बहोत हद तक नियत्रित करता है, जो हमारे शरीर को प्रभावित करता है। हम जो भी देखते या सुनते है या कुछ भी अनुभव करते है उससे न केवल हमारा मूड बदलता है बल्कि हमारी सारी तंत्रिका और प्रतिरक्षा प्रणाली काम करती है। एक अप्रिय वातावरण हमें और तनावपूर्ण या उदास कर सकता है।     मानव जीवन प्रकृति की सबसे परिष्कृत जीवन प्रणाली है। प्रकृति चाहती है की इंसान उसके साथ तालमेल बिठाकर जिए क्योकि दोनों अविभाज्य है, एकदूसरे के पूरक है।  प्रकृति ने आपको बनाया है तो आप ये मत समझिये की प्रकृति हमें छोड़ देगी।  हम इंसानो को धूल और राख़ में मिटाने के लिए उसे ज्यादा देर नहीं लगेगी।  हां, प्रकृति के साथ हमें प्रतिदिन लड़ना चाहिए लेकिन सिर्फ़ जीवित रहने के लिए। हमने बेहिसाब तरीके से पृथ्वी से संसाधन लिए है। हमने बेहिसाब तरीके से जंगलो को काटकर शहरी संरचनाएं बनायीं है, लेकिन ये सब हमारा बिलकुल नहीं है। हमने केवल नेचर से उधार लिया है।  हमारे द्वारा खाया गया भोजन भी गायब नहीं होता और न हम।  पर्याप्त समय पर ये सारा प्रकृति में वापस चला जाता है।  कुछ सालों बाद तो हमारा ताबूत और उसमे मरे पड़े हम सारा उसी मिट्टी में मिल जाता है जो हमने प्रकृति से बड़ी अकड़ के साथ छिना था। एक दिन पैसो से भरी तिजोरी भी उसी मिट्टी का हिस्सा हो जाएगी, जिसके लिए हमने पूरी जिंदगी पाने में लगा दी। फिर भी हम अब तक इतने भी शिक्षित नहीं हुए है की ये जान सके की धूल से हम पैदा हुए है और धूल में ही हमें वापस लौट जाना है। बहोत हद तक वो ही इंसान प्रकृति का विनाश करता है जो उससे नफ़रत करता हो। लेकिन प्रकृति दयालु है और बहोत दयालु है क्योकि वो किसी को भी नष्ट नहीं करती। आप किसी भी पेड़ से एक पत्ता तोड़ लीजिये, प्रकृति बदले में  तीन नए पत्ते पैदा करती है।  क्योकि प्रकृति की हर एक चीज़ स्वयं में एक "प्रकृति" है।  हमारी पैदाइश भी कोई अलग से नहीं हुयी है ? इस ग्रह पर हर दूसरे जीव की तरह, हम उन परिस्थितियो मे विकसित हुए है, जहां प्रकृति हमें जीवित रखना चाहती थी।  हां, ये हमारा सौभाग्य है की हम पशु से इंसान की श्रेणी में आ गए है लेकिन हमारी सोच पशु से भी गयी गुजरी है। असल में हम सभी पशु से बत्तर सोच में जीते है। और हम सभी फिर भी खुद को इंसान मानते है तो हम से बड़ा बेवकूफ़ कोई दूसरा नहीं हो सकता।  हाँ, लाखों में कोई गिनती के लोग जरूर हो सकते है जो सच में इंसान होने की श्रेणी में आते है।      एक शिकारी प्रजाति का जीव किसी दूसरे प्रजाति के जीव को कभी भी विलुप्त होने की कगार तक शिकार नहीं करता। कोई भी पौधा दूसरे की तुलना में अधिक फलने - फूलने की कोशिश भी नहीं करता। सिवाय इंसानों के, क्योकि मनुष्य अपने आप को प्रकृति में सबसे ऊपर रखता है।  बात चाहे कुछ भी हो, हमारी सोच भले ही कुछ भी हो लेकिन हम प्रकृति/नेचर का सिर्फ  एक  हिस्सा है, जितना की शेर, गाय, बकरी या मछली, पेड़, फूल, जमीन, आकाश  या और कुछ भी जो इस धरती पर है।  अगर हम नेचर के साथ गलत कर रहे है तो याद रखे प्रकृति भी हमें मिटाने के लिए २४ /७ तैयार है और बहोत बुरी तरह से तैयार है। हम चाहे या न चाहे, सच्चाई यही है की प्रकृति हमेशा हमारी मृत्यु की तलाश में है और इस कड़वे अंत की ख़ोज में है। क्योकि वास्तव में प्रकृति क्रूर है और वह हमारी दलीलों को नहीं सुनती।      दोस्तों ये ब्लॉग पोस्ट नेचर के बिघडते हालत को मध्यनज़र लिखा गया है। lifometry आपसे निवेदन करता है की कृपया इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। आप अपने बहुमूल्य सुझाव हमें दे सकते है। आप सभी को अपना समय दे कर इसे पढ़ने के लिए धन्यवाद।
हम से बड़ा बेवकूफ़ कोई दूसरा नहीं


हम आधुनिक सभ्यता के लोगो ने इस प्राकृतिक दुनिया को इस हद तक बर्बाद कर दिया है जिसे वापस उसी स्थिति में पाना अब शायद ही संभव हो । हम इंसानों ने अपने पुरे मानव इतिहास में जो चीज़ सबसे ज्यादा बर्बाद की है, वो हैं प्रकृति /नेचर। हम आज भी सभ्यता के नाम पर उस चीज़ को बर्बाद कर रहे हैं, जिससे हम सब जिन्दा है। और सिर्फ हम ही जिन्दा नहीं है, हमारी आने वाली पीढ़ी भी जिन्दा रहेगी। हम सभी तथाकथित आधुनिक सभ्यता के लोग उस चीज़ पर जीत हासिल करना चाहते है, जिसमे सिर्फ और सिर्फ हमारी ही हार है। हाँ, ये जरुरी है कि, जीवन जीने के लिए प्रकृति के साथ संघर्ष करना चाहिए। और बड़े मज़े की बात है की अब ये संघर्ष हमारी महत्वाकांक्षा में बदल गयी है। हम इंसांनो ने अब तक इतने जंगली जानवरों को मार डाला है कि कुछ प्रजातियाँ तो पूरी तरह से विलुप्त हो गयी है। छोटी मोटी कई नदियों के धाराओं को हमने पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। हमने कई झीलों को बंजर बना दिया है। हम अब तक ये बात नहीं समझे कि हम मनुष्य भी दूसरे जानवरों के बैगैर जीवित नहीं रह सकते।  अगर हम उन्हें विलुप्त कर रहे है तो वो दिन दूर नहीं जब नेचर ही हमें खुद विलुप्त कर देगी।   


आज हम सभी लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जीते है। लेकिन यह भी नेचर की देन है। हमने अपने स्वस्थ होने लिए जो भी तरीके इस्तेमाल किये है वो सारे नेचर की और से है। आज हम जो भी दवा इस्तेमाल करते है, वो सारी प्रकृति की और से ही आती है। फिर भी हम नेचर को धन्यवाद दिए बिना ही जिए जाते है। हम अब तक इतने भी शिक्षित नहीं हुए की अपने आस पास की जगह को ठीक ठाक रख सके। सीधी बात तो ये है की हम सिर्फ अपने शिक्षित होने का ढोंग करते है। आप जरा सोचिये, क्या हम पर्यटन की जगह को साफ सुथरा रखते है ? मुझे नहीं लगता की हम लोग अपने घर को छोड़कर दूसरे जगह हो स्वच्छ और सुन्दर देखना चाहते है। जबकि वातावरण हमारे तनाव को बहोत हद तक नियत्रित करता है, जो हमारे शरीर को प्रभावित करता है। हम जो भी देखते या सुनते है या कुछ भी अनुभव करते है उससे न केवल हमारा मूड बदलता है बल्कि हमारी सारी तंत्रिका और प्रतिरक्षा प्रणाली काम करती है। एक अप्रिय वातावरण हमें और तनावपूर्ण या उदास कर सकता है। 


मानव जीवन प्रकृति की सबसे परिष्कृत जीवन प्रणाली है। प्रकृति चाहती है की इंसान उसके साथ तालमेल बिठाकर जिए क्योकि दोनों अविभाज्य है, एकदूसरे के पूरक है।  प्रकृति ने आपको बनाया है तो आप ये मत समझिये की प्रकृति हमें छोड़ देगी।  हम इंसानो को धूल और राख़ में मिटाने के लिए उसे ज्यादा देर नहीं लगेगी।  हां, प्रकृति के साथ हमें प्रतिदिन लड़ना चाहिए लेकिन सिर्फ़ जीवित रहने के लिए। हमने बेहिसाब तरीके से पृथ्वी से संसाधन लिए है। हमने बेहिसाब तरीके से जंगलो को काटकर शहरी संरचनाएं बनायीं है, लेकिन ये सब हमारा बिलकुल नहीं है। हमने केवल नेचर से उधार लिया है।  हमारे द्वारा खाया गया भोजन भी गायब नहीं होता और न हम।  पर्याप्त समय पर ये सारा प्रकृति में वापस चला जाता है।  कुछ सालों बाद तो हमारा ताबूत और उसमे मरे पड़े हम सारा उसी मिट्टी में मिल जाता है जो हमने प्रकृति से बड़ी अकड़ के साथ छिना था। एक दिन पैसो से भरी तिजोरी भी उसी मिट्टी का हिस्सा हो जाएगी, जिसके लिए हमने पूरी जिंदगी पाने में लगा दी। फिर भी हम अब तक इतने भी शिक्षित नहीं हुए है की ये जान सके की धूल से हम पैदा हुए है और धूल में ही हमें वापस लौट जाना है। बहोत हद तक वो ही इंसान प्रकृति का विनाश करता है जो उससे नफ़रत करता हो। लेकिन प्रकृति दयालु है और बहोत दयालु है क्योकि वो किसी को भी नष्ट नहीं करती। आप किसी भी पेड़ से एक पत्ता तोड़ लीजिये, प्रकृति बदले में  तीन नए पत्ते पैदा करती है।  क्योकि प्रकृति की हर एक चीज़ स्वयं में एक "प्रकृति" है।  हमारी पैदाइश भी कोई अलग से नहीं हुयी है ? इस ग्रह पर हर दूसरे जीव की तरह, हम उन परिस्थितियो मे विकसित हुए है, जहां प्रकृति हमें जीवित रखना चाहती थी।  हां, ये हमारा सौभाग्य है की हम पशु से इंसान की श्रेणी में आ गए है लेकिन हमारी सोच पशु से भी गयी गुजरी है। असल में हम सभी पशु से बत्तर सोच में जीते है। और हम सभी फिर भी खुद को इंसान मानते है तो हम से बड़ा बेवकूफ़ कोई दूसरा नहीं हो सकता।  हाँ, लाखों में कोई गिनती के लोग जरूर हो सकते है जो सच में इंसान होने की श्रेणी में आते है।  


एक शिकारी प्रजाति का जीव किसी दूसरे प्रजाति के जीव को कभी भी विलुप्त होने की कगार तक शिकार नहीं करता। कोई भी पौधा दूसरे की तुलना में अधिक फलने - फूलने की कोशिश भी नहीं करता। सिवाय इंसानों के, क्योकि मनुष्य अपने आप को प्रकृति में सबसे ऊपर रखता है।  बात चाहे कुछ भी हो, हमारी सोच भले ही कुछ भी हो लेकिन हम प्रकृति/नेचर का सिर्फ  एक  हिस्सा है, जितना की शेर, गाय, बकरी या मछली, पेड़, फूल, जमीन, आकाश  या और कुछ भी जो इस धरती पर है।  अगर हम नेचर के साथ गलत कर रहे है तो याद रखे प्रकृति भी हमें मिटाने के लिए २४ /७ तैयार है और बहोत बुरी तरह से तैयार है। हम चाहे या न चाहे, सच्चाई यही है की प्रकृति हमेशा हमारी मृत्यु की तलाश में है और इस कड़वे अंत की ख़ोज में है। क्योकि वास्तव में प्रकृति क्रूर है और वह हमारी दलीलों को नहीं सुनती।  


दोस्तों ये ब्लॉग पोस्ट नेचर के बिघडते हालत को मध्यनज़र लिखा गया है। lifometry आपसे निवेदन करता है की कृपया इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। आप अपने बहुमूल्य सुझाव हमें दे सकते है। आप सभी को अपना समय दे कर इसे पढ़ने के लिए धन्यवाद।  



No comments:

Post a Comment

IFRAME SYNC