तेरे यादों का सुरूर कुछ इस क़दर छाया हैं कि अब, आँगन का पीपल युहीं हवाओँ से सरसराता हुवा महसूस होता हैं। आँगन का झुला युहीं लहराता हुवा महसूस होता हैं। बहोत ख़ामोशी से, अकेले में मैं तुम्हेँ काग़ज़ पर लिखना चाहता हूँ, लेकिन ऐसा कुछ कभी होता ही नहीं हैं। शायद ख़ामोशी को लिखा ही नहीं जाता हो। दोपहर का अकेलापन काफ़ी बैचैन कर रहा हैं। आँगन में धीरे धीरे सरकती परछाइयाँ बस युहीं देखते रहता हूँ। लगता हैं इन परछाइयों का मुझसे कुछ अजीब रिश्ता हैं, बिलकुल तेरी तरह। दिन का उजाला अब रात के आगोश में जाने को बेक़रार सा लग रहा हैं। खिड़की से बस युहीं अपने घरोंदों को लौट आने वाले परिंदों को देखते रहता हूँ। सोचता हूँ, क्या वो भी मेरी तरह किसी को याद करते होंगे? क्या उन्हें भी किसी की याद सताती होगी ?
धीरे धीरे मन दूर कहीं दिखने वाले नीले आकाश को निहारता रहता हैं। ऊंचे आकाश में उड़ने वाले पंछियों को मैं पलकें मूंदे देखता रहता हूँ। दूर रास्ते पर ख़ामोशी से खड़े हरे पेड़, खिड़की से नज़र आने वाले कवेलू के घर और उन पर फड़फड़ाते हुए कुछ कबूतर, रास्तों के किनारों पर बिख़रे हुए गुलमोहर के फूल, भरी धुप में अपना हरापन लेकर खिले हुए पेड़, दिल को कुछ अलग ही सुकून दे जाते हैं। लेकिन ये सारा सुकून तेरे बैगेर सूना सूना सा है। यादों के पन्नों को युही पलटते हुए मुझे दिखाई पड़ते है तेरे मेरे पाँवो के निशान जो कभी हमारे साथ चलने से बने थे। मुझे दिखाई पड़ते हैं खिड़कियों पर बस युही थम से गए हुए बारीश की बुँदे जो तूने मैंने कभी आँखे भर कर देखे थे।
मैं जानता हु जिंदगी के हर मौसम में तू मेरे साथ हैं, शायद इसलिए अब धूप भी छॉव सी लगती हैं। शायद इसलिए अब मुझे जिंदगी के परीशानियों में भी हँसी दिखती हैं। तेरे बिना ये सब सुना सुना हैं , हँसी के दो पल भी बेजुबाँ हैं ।बस, अब तो ख्वाईश इतनी सी हैं की मेरे आसूओं को तेरे दामन पर बिख़र जाने दे। यादों के सफ़र में और एक फ़रियाद हैं तुज़से, मेरे भी लफ़्जों के दामन में अनगिनत चिंगारियाँ छुपी हैं, जरा उन्हें भी तो आहिस्ता आहिस्ता छूने की कोशिश तो कर। मुझे फिर से अपना अहसास बना कर तो देख, मुझे फिर से अपना अल्फ़ाज़ बना कर तो देख, अपने दिल की आवाज़ तो बना कर देख। फिर से एक बार, सिर्फ एक बार अपने ख़्वाबों में मुझको सजाकर तो देख।
Nice
ReplyDeleteNycccc
ReplyDeleteMany Many thanks Shakil.
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