धम्म दर्पण - An inner self reflection

Spiritual Energy
हमारी वास्तविकता यही हैं कि हम सभी आध्यात्मिक हैं। हम आध्यात्मिक ऊर्जा से बने है, जिसका अर्थ है कि हम अनंत और सचेत हैं। आध्यात्मिक ऊर्जा हमारे शरीर से बनी अस्थाई, अचेतन पदार्थ से श्रेठ हैं। और इसी आध्यात्मिक ऊर्जा को बिना जाने, बिना अनुभव किये बैगैर हम पागलो की तरह धर्म को मानते चले जाते हैं। ऐसा नहीं हैं कि धर्म की सच्चाई नहीं हैं, बिलकुल हैं, लेकिन उस  सच्चाई को अगर आपने खुद खोजा हो तो।  मेरी समझ ये हैं कि अगर आप सैद्धांतिक का चश्मा पहन कर धर्म की खोज कर रहे हैं, तो कोई भी ज़वाब आपको संतुष्ट नहीं कर सकता। हाँ, बने बनाये धर्म आपको जरूर मिल जाएंगे। बने बनाये धर्म को अगर आप धर्म कहते हैं तो आप किसी बड़ी घटना को नकारते हैं, क्योकि कोई भी धर्म इतना सस्ता नहीं हो सकता की हम सबको रेडीमेट मिल जाये जिसके लिए हमें कोई क़ीमत चुकानी ना पड़े। आप के माने हुए धर्म को जानने के लिए आप के पास कोई गहरा अनुभव नहीं, और जो हैं, वो आपका अपना अनुभव नहीं होगा। अगर अनुभव खुद का नहीं तो किसी के द्वारा खोजा गया धर्म कैसे आपका हो सकता हैं ? हमारा का सारा ज्ञान दो कौड़ी का हैं अगर हमारे  पास आत्मज्ञान ना हो तो। असल में, धर्म हमारे अनुभव को गहराई से और ध्यान से देखने के लिये हैं।  ईश्वर की विचारधारा कुछ लोगों के लिए एक प्रेरणादायक विचार हो सकता है लेकिन अधिकांश धर्मो में किसी चीज़ की उपस्थिति की तलाश शामिल है, और मेरी समझ में यह काफी अलग तरीका हैं और इसी अर्थ में नास्तिकता एक धर्म हैं, जो आध्यात्मिक अवधारणाओं के सम्बद्ध में विचार प्रस्तुत करता है। 

सभी धर्म अपने अपने अनुयाइओंके के लिए महत्वपूर्ण और मूल्यवान होते हैं चाहे वह स्वयं के बारे में हो या किसी और के बारे में। और बात यही ख़त्म नहीं होती, हम हमेशा धर्म की व्याख्या अपने विचार से शुरू करते हैं और अपने मुताबिक़ बदलना चाहते हैं। इसीलिए सभी अपने आप को अन्य सभी से ऊपर होने की कोशिश करते हैं । हम इसी भ्रम में हैं कि हम इस ब्रम्हांड में सबसे बुद्धिमान प्राणी हैं। और ये बड़ी सोचने वाली बात हैं कि हम इस कदर किसी धर्म को अपना मानते हैं, जिस धर्म को हमने ख़ुद कभी अनुभव ही नहीं किया। हमने खुद होकर धर्म की वास्तविकता जानने की कभी कोशिश ही नहीं की। जिस धर्म को कभी किसी ने खुद अनुभव किया था, उस पराये अनुभव को क़िताबों में पढ़ कर हम समज़ते हैं कि हमें धर्म का बड़ा ज्ञान हो गया हैं। किसी के मौलिक अनुभव को भी हम चुराने में परहेज़ नहीं करते। उधार धर्म की दो -चार बातें पढ़ कर हम अगर अपने आप को धार्मिक समज़ते हैं तो हमारी धार्मिकता दो कौड़ी की हैं। और पूरी दुनिया ऐसे नासमझो से भरी पड़ी हैं, जो इतनी भी हिम्मत नहीं रखते के ये बोल सके "हाँ, मैं धर्म के बारे के बिल्कुल अनजान हु, मेरा अपना उस संदर्भ में कोई अनुभव नहीं हैं"। अगर हम दूसरों की जिंदगी नहीं जी सकते या दूसरे की मौत नहीं मर सकते तो दूसरे का अनुभव कैसे अपना हो सकता हैं। जिन्होंने भी धर्म की खोज की उन्होंने खुद को दॉँव पर ऱख कर उस अनुभव को हासिल किया। धर्म की खोज असल में खुद की ख़ोज हैं। लेकिन कितने लोग ख़ुद को ख़ोजने की चेष्टा करते हैं। हर व्यक्ति का अपना ख़ुद का धर्म होता हैं लेकिन बजाय उसे परखें हम दूसरों में उसे खोजते हैं।  हाँ, किसी दूसरे के अनुभुतित धर्म से हमारे जीवन में बहार आनी होती तो अब तक आ जानी चाहिए थी।  क्योकि पूरी दुनिया में तक़रीबन ४,२०० धर्म, लाखों चर्च, मंदिर, मस्ज़िद, विहार, हजारों संप्रदाय, सैकड़ो धार्मिक संस्थाएं, अनेक धर्मसमूह, जनजातियां आदि हैं फिर भी हमसे उदास, हमसे चिंतित, हमसे आक्रामक, हमसे स्वार्थी दूसरा कोई भी प्राणी नहीं। दुनिया में अगर सभी धर्मों का इतना सचेत रूप से हमारे जीवन में प्रभाव शामिल है,और हर कोई मानवता और धर्म से भरा हैं तो फिर दुनियाँ भर में इतना आंदोलन, हिँसा, बलात्कार, अपहरण, जिस्मफ़रोशी क्यों हैं ? मानवता को ध्यान में रख़ते हुए क्या आप को यह बहुत निराशाजनक नहीं लगता ? ये बिल्कुल निराशाजनक हैं जहाँ हम इंसान बलात्कार,हत्या और यातना जैसे अमानवीय घिनौने काम करने में माहिर हैं। अगर ये आपका वास्तविक धर्म होता,जिसे आपने अनुभव किया हैं तो शायद हम यह सुनिश्चित करने में अपना समय लगाते की हमारी ग़लती कहा हो रही हैं।

ख़ुद के द्वारा खोजें गये धर्म का उद्देश हमारी सभी सीमाओं और समस्याओं को दूर करना और हमारी सभी संभावना को महसूस करना हैं ताकि हम ख़ुद को उस बिंदु पर विकसित कर सकें, जिस पर हमें गर्व हो। अगर हम सभी चीज़ें जाँच परख के लेते हैं तो हम पे थोपें गए धर्म को हम कैसे अंधे बन कर अपना मान लेते हैं? हाँ, माँ-बाप आपको जन्म दे सकते हैं, पर धर्म नहीं। और जो धर्म लेकर आप जी रहे हो वो धर्म नहीं संप्रदाय हैं। क्योकि धर्म में सिर्फ़ और सिर्फ आप अकेले होते हैं। वहाँ संप्रदाय जैसी भीड़ नहीं होती। धर्म को समझने का मतलब सीखना नहीं हैं बल्कि इसे समज़ने के लिए सभी को माफ़ करना हैं। जो भेड़ बकरियों की जमात वाले संप्रदाय के परे हैं। कोई बच्चा हिन्दू परिवार में पैदा हुआ तो पैदा होते ही हिन्दू हो गया। मुस्लिम परिवार में पैदा हो गया तो इस्लाम का ठप्पा लग गया। बुद्ध को मानने वाले हैं तो बच्चा बौद्ध हो गया। हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई जो कोई भी हो, वह बचपन से ही उस संप्रदाय का हो गया, जिस संप्रदाय के प्रति उसका अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं हैं। उसी सम्प्रदाय के ग्रंथो को बिना पढ़े, समझे उसे दुनियाँ की महानतम पुस्तक कहता रहा। उसके संप्रदाय के पुजारी, मौलवी, पादरी, भन्ते या तथाकथित धर्मगुरु ने जैसा करने को कहा, बिना दिमाग़ लगाएं और बिना सवाल किये वैसा ही करता रहा। सच में ईश्वर,आत्मा या अन्य पारलौकिक चीज़ें होने या ना होने की खोज किये बैगेर हम अपने किसी तथाकथित धर्मग्रंथ को रटना ज्यादा पसंद करते हैं। असल में हम इतने कायर हैं की जो कुछ भी महत्वपुर्ण उस धर्मग्रंथ में जिस भाषा में लिखा गया हैं, हम उस भाषा को भी सिखने की कोशिश नहीं करते। बल्कि हम उसके अनुवाद को पढ़कर समज़ते हैं की हमें धर्म का ज्ञान हो गया ? धर्म की किताबों के अलावा खुद के दिमाग़ से भी बहुत कुछ नया सोचा जा सकता है। लेकिन इस ज्ञान को पाने के लिए आप के आप बौद्धिक तृष्णा, संदेह करने की हिम्मत होनी चाहिए। मनुष्य का दिमाग़ हमेशा कुछ नया जानने के लिए प्यासा हैं, इसकी प्यास सिर्फ और सिर्फ ख़ुद के खोदे हुए कुएं से ही बुझ पायेगी।  

हो सकता हैं अधिकांश लोगों को ये पंसद नही आएगा क्योंकि हम सभी नया कुछ सोचने और करने की क्षमता खो चुके हैं। लेकिन ऐसे बहोत लोग हैं जो नये की ख़ोज में हैं और अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रति संवेदनशील हैं ऐसे सभी लोगों को मेरा नम्र अभिवादन। अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रति अधिक से अधिक सचेत रहे और अपनी नजरों में बेहतरीन इंसान बनने की कोशिश करें। अपनी ख़ुद की नजरों में बेहतरीन होना किसी पुण्य से कम नहीं। एक बार ही सही कोशिश करने में क्या हर्ज हैं? 




6 comments:

  1. Very True being Spiritual is very much different than being Religious two totally different aspects nor Human emotion

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    1. Thank you very much Swami for your valuable comment.

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    1. Sincere thanks Saumitraji for giving your valuable time to read our blog. We will be glad, if you join our LIFOMETRY family by way to follow.

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    1. Thank you very much Bhushanji, your comments definitely boost-up me. LIFOMETRY assure you in future you will get more inspirational post. Stay connected and happy reading...!!

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