पढ़े लिखे गवाँरो की इंसानीयत : Kerala Elephant Death

अगर हम खुद को इंसान समज़ते हैं तो हम जरूर किसी गलतफ़हमी में जी रहे हैं। इंसान के रूप में पैदा होने से हम इंसान नहीं हो जाते। इंसान होने के लिए हमारे अंदर थोड़ी बहुत इन्सानियत होनी चाहिए। और बड़े मज़े की बात हैं की हर कोई अपने आप को इंसानियत का देवता समज़ता हैं। यह भ्र्म किसी एक व्यक्ति को नहीं बल्कि दुनिया के सभी लोंगो हैं। हो सकता हैं, ये आप को बुरा लगे लेकिन सच्चाई यही हैं।  क़िताबों में, फ़िल्मों में में  इंसानियत पढ़ना / देखना काफ़ी अच्छा लगता हैं।  पर वास्तिवकता में इंसानियत से कोई नहीं जीना चाहता हैं।  

खाने के बदले में हम इंसान अगर किसी बेजुबान जानवर को दर्दनाक मौत दे सकते हैं तो हम इंसानियत के किसी भी निचले स्तर पर जा सकते हैं। पलक्कड़ जिले में पिछले सप्ताह एक गर्भवती हथनी खाने की तलाश में शहर की और  गयी।  हथनी को जिसने जो  खिलाया उसने उसे खा लिया।  मगर हम जैसे पढ़े लिखे गवाँरो ने फलों के भीतर पटाखे  छिपाकर उसे खिला दिए, जिससे उसके मुँह  में धमाका हो गया । उसका मुँह और जीभ बहुत तरह से चोटिल हो गयी और बाद में उसकी मौत हो गयी। उसने जब फल खाया तो उसे पता नहीं था की इसमें पटाखे  हैं।  इंसान की इस की धोखेबाज़ी के बावजूद, अपने भीषण दर्द में भी उसने किसी को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाया। ना ही किसी के घर को रौँद दिया।  इससे पता चलता है की वह अच्छाईयों से भरी हुयी थी।  कम से कम इंसानो की तुलना में। उसने सभी पर विश्वास किया। आख़िरकार वो वेलियार नदी में खड़ी हो गयी।  वन विभाग के लोगो ने उसे बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन उसने ऐसा नहीं करने दिया। वन विभाग ने उसे उसी जंगल में अंतिम विदाई दी, जहां उसका बचपन बिता और वो बड़ी हुई थी।  हथनी की पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट से ये पता चला की वह गर्भवती थी। पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट में कहा गया कि उसकी मौत पानी में साँस लेने के कारण फेफडों में पानी भर जाना भी था।  इसके अलावा अनानस खाने से हुए विस्फोट में उसका जबड़ा टूट गया था और वह कुछ भी चबा पाने में असमर्थ थी।  


कहते है जानवर इंसान के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं लेकिन जब इंसान हैवानियत पर उतर आये तो क्या किया जा सकता हैं। केरल की ये घटना इंसानियत को तार तार करती हैं। उसकी इस मौत ने हमारे इंसान होने के सवाल को जिन्दा कर दिया। उस गर्भवती हथनी के साथ जो हुआ वो शायद ही कोई जानवर आपके साथ करता हो।  हमारी स्कूली तथा सामाजिक शिक्षा का बत्तर प्रर्दशन और क्या होगा।  और ऐसा करने वाले हम उसी भारत देश के लोग है जो सारी दुनिया को बताते फिरते है की "मेरा भारत महान" । जिस देश के लोगो को बेजुबान जानवरों के प्रती जरा भी दयाभाव  नहीं वो देश कैसे महान हो सकता हैं ? कैसे उस देश के लोग इन्सानियत से भरे हो सकते हैं ? सच में अगर हमारी संस्कृति पत्थर में भगवान देखना सिखाती हैं तो पटाख़ा खिलाकर हत्या करना कौनसी संस्कृति हैं ? किस संस्कृति के तलफगार है हम ? अगर आप किसी भी जानवर के घर को तबाह करेंगे तो हो  सकता हैं वो आपके घर की दहलीज तक पहुँच जाए।  ऐसा कभी नहीं होता है कि कोई जानवर अपना जंगल छोड़कर आपके घर में घुस जाए।  जिस किसी ने भी उस बेजुबान जानवर की जान ली हो सिर्फ वो ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि हम सब उतने ही जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपने घर के लिए उनका घर उजाड़ दिया हों, उसको भूखा मरने की कग़ार पर छोड़ दिया हो।   

क्या हो सकता है अगर कोई जानवर  किसी इंसान पर भरोसा करे और वो भरोसा विश्वासघात में बदल जाए। दुनिया के किसी भी जानवरों की भाषा में इन्सानियत और विश्वासघात जैसे खोकले शब्द नहीं होते।  बचपन से सभी को ये पढ़ाया गया हैं कि इंसान सभी जानवरों में सबसे बुद्धिवान प्राणी हैं।  पर आप को ये जानकर बड़ा दुःख होगा की इंसान जैसा विश्वासघाती और धोकेबाज़ और कोई दूसरा नहीं। हम सभी भले ही इंसानियत और मानवता की बड़ी बड़ी बातें कर लें, पर ये सिर्फ बाते हैं जो कागजों पर ही अच्छी लगती हैं।  हाँ, कुछ लोग है जो सच में वास्तविक  मानवता के साथ जीते हैं।  अगर वो सच में वास्तविक मानवता के साथ जीते हैं तो समज़ लेना चाहिए कि उन्होंने दुनिया की दिखावटी भीड़ से अपने आप को छुपाके रखा होगा।  अगर किसी बगीचे में हजारों फूल खिले हो तो उसका सारा श्रेय बेशक़ उस माली को जाना जाहिए जिसने उस बगीचे का ख्याल रखा, पर सारे फूल मुरझा जाएं और सिर्फ कुछ ही फूल बच जाए तो आप उसे माली की काबिलियत नहीं कहेँगे। ये कहना ज्यादा उचित हैं की सौभाग्यवश माली की नज़रो वो पौधें किसी तरह से बच गये। अगर माली के हाथ पड़ते तो वही होता जो बाकि फूलों का हुआ।  हमारी इंसानियत भी कुछ इसी तरह की हैं।  पेपर में पढ़ने से, टीवी पर न्यूज़ देखने से, व्हाट्सप्प पर और दूसरे सोशल मीडिया पर अपनी कुछ बनावटी संवेदना पोस्ट करके हम समज़ते है की हम बहोत संवेदनशील हैं और हम में इंसानियत कूट कूट कर भरी हैं तो इसे बड़ा विश्वासघात क्या होगा ? और ये विश्वासघात किसी जानवर के साथ नहीं बल्कि खुद के साथ हम करते हैं और सच्चा इंसान होने का ढ़ोंग रचाते  हैं। कम से कम जानवरों जैसे प्रामाणिक तो बने।  कोई शेर आप को दिखाने के लिए घास नहीं खायेगा, कोई चिड़िया आप को रिझाने के लिये नहीं गायेगी। सभी जानवर प्रामाणिक  हैं और अपनी प्रमाणिकता के प्रति समर्प्रित हैं,  सिर्फ इंसान को छोड़कर। आईये, कम से कम जानवरो जैसा प्रामाणिक बनने की कोशिश करें। और ये हमें करना होगा क्योकि हमारी मुलभुत संरचना जानवरों जैसे ही हैं।  फ़र्क सिर्फ इतना हैं कि हम दो पैरों पर खड़ा होना सीख़ गये और इंसान हो गये। 

कृपया इसे संवेदना के साथ पढ़े और वास्तविक मानवता के लिए प्रतिबद्ध रहें। इसे आप तब तक शेयर न करे जब तक आप मानवता के प्रति पूरी तरह से समर्प्रित न हों।  ये लेख उस भावना से लिखा गया हैं जिसके शरीर का कोई हिस्सा मानों काट लिया हो। जागतिक पर्यावरण के दिन किसी बेजुबान जानवर को श्रद्धांजली देना बहोत रुलाता हैं। शायद हो सकता हैं, कि ये श्रद्धांजलि उस जानवर के लिए न हो जो दर्द से असहाय मर गया बल्कि उस मानवता, इंसानियत के लिए हैं जो हम ने पूरी तरह से खो दिया हैं, हमेशा के लिए।  















4 comments:

  1. I think humanity doesn't lie in the heart of evil man..they were very cruel who has done this kind of pathetic job..God will never forgive them...
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    1. Really thanks for your valuable comments. Hope, you will enjoy reading our other posts.

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  2. That was really shamefull thing happened
    Hope people should come to their senses

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    1. Yes, definitely it was shameful. Very less people are understand this. Thank you very much for interest in reading our blog post and valuable comment.

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